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* Nirankari Hindi Vichar : -

     सद्गुरु के वचन की कद्र करना ही सही इबादत व बंदगी है हर वचन को निरंकार का हुक्म समझ कर मानना सर्वोत्तम कर्म है
सद्गुरु का एक एक शब्द किसी को कोहिनूर हीरे से कम कीमती नहीं होता हीरे का मूल्य तो डाला जा सकता है परन्तु सद्गुरु के वचन अमोलक हुआ करते हैं संतो के वचन जो जीवन दान देने वाले होते हैं , वे भी अमूल्य हैं यही वचन मानाने वाला मानव मनमुख से गुरुमुख एवं अज्ञानी से ज्ञानी बन जाता है
गुरु के वचन को केवल कानो से नहीं, मन की गहराइ से सुनना, एक एक वचन को हृदय में उतरना और उस पर आचरण करना, गुरु के वचनो का सम्मान है
गुरु वचनों में मिलावट करना, उनमे फेर बदल करके दुसरो से सम्मुख पेश करना सबस बड़ा पाप है गुरु वचनों को ज्यो का त्यों दुसरो तक पहुचाना ही गुरसिख का कर्त्तव्य है
अपना सुख सदौव गुरु  की और रखना, देश काल एवं समयानुसार गुरु का जो आदेश देता है उस आदेश का वचनानुसार जीवन को जीना अपने जीवन को आनंददायी बनाना है
सत्य का मार्ग फूलों की सेज नहीं, काँटों पर चलने के सामान है इस पर चलने के लिए जहाँ  गुरु की कृपा संतजनों की सांगत और निरंतर प्रार्थनाएं चाहिए, वही  जिन करियो को करने से और इन बातो से सावधान रहने के लिए गुरु कहता है, उन पर अभी ध्यान देकर सत्य के कठिन मार्ग पर चला जा सकता है
सद्गुरु के वचनों को पूर्णतः उसी रूप में मानना जिस रूप में कहे गए हैं ही गुरमत है ,गुरु वचनों के अर्थ अपनी मनमर्जी एवं अपनी मनमर्जी एवं सुविधा अनुसार निकालना मनमुख बनकर अपने  पाव पर आप कुल्हाड़ी मरना है
गुरु का वचन सदा सुखदाई होता है इस पर अपने मन को दृढ़ रखना है यदि वचन मन की इच्छा के विपरीत भी आ जाये तो भी वचन को मानने में ही भक्त की भलाई है
भक्त की अपनी कोई योजना, इच्छा सोच नहीं  होती, गुरु के वचनानुसार कार्य करना ही भक्त की सोच व योजना का केंद्र बिंदु होता है
निरंकार व सद्गुरु दुखभंजन है, ये किसी को दुःख �

Dhan Nirankar Ji

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